Monday, September 3, 2007

मां

हे मां, तुझे प्रणाम
शत-शत नमन
तू है मेरी जननी, है
इस जग की जननी
तेरे चरणों में है मेरा संसार
तुझ पर है सारा जग निसार
हे मां तुझे प्रणाम.........
तेरी वाणी में है वास
सरस्वती का
तेरे चरणों में है आशीष
संतों का
तू है तो अस्तित्व है मेरा
मेरा सर्वस्व है तेरा
तेरे आंचल में मिले
गजब का सुकून है
हे मां तुझे प्रणाम

Saturday, September 1, 2007

Aaj ke sawal


रोज की तरह मैंने जैसे ही अगरबत्ती दिखाई
उधर से भगवान विष्णु ने अपनी साक्षात क्षवि दिखाई
बोले, मूर्ख भक्त क्यों मेरी पूजा कर मुझे
परेशान करता है
मेरे आराम में खलल कर मुझे
हैरान करता है।
मैंने कहा, प्रभु, मेरे बड़े भाग्य जो आपके
दर्शन तो हुए,
मेरा बड़ा दुर्भाग्य जो आप मेरी पूजा से
इतना परेशान हुए।
खैर, अपने आने का प्रायोजन मुझे बताइये
मेरे मस्तिष्क से रहस्य का पर्दा जरा उठाइये।
भगवन बोले,
भक्त, मेरी बात ध्यान से सुनो
और जैसा कहता हूं करो।
मैंने कंस को मारने कृष्णावतार लिया,
वहीं कंस का वध करने रामावतार लिया।
इन दोनों ने अपने ग्लैमर को
इस कदर भुनाया
कि
लोगों ने मेरी जगह
इन्हें अगरबत्ती दिखाया।
आज जब इनका नाम धूमिल हो रहा है,
इन्होंने आडवाणी को धरती पर भेज दिया है।
भगवन बोले,
भक्त उस पुरानी भूल को
फिर मत दोहराना,
मेरी जगह आडवाणी को
अगरबत्ती मत दिखाना।
अगर ऐसा किया तो
धर्म का नाम नहीं होगा,
अधर्म का नाश नहीं होगा,
कभी कोई मंदिर तो
कभी को मस्जिद गिरायेगा,
मगर हमेशा एक सच
वो धर्म टूटेगा।
लहु किसी का भी बहे मगर
लहु कहलाएगा,
बच्चा कोई भी मरे
मगर बेटा कहलाएगा।
ये कमबख्त सरकारें तो
आएंगी और जाएंगी मगर
विधवा की सूनी मांग में
सिंदूर कौन लगाएगा।
इतना कहकर भगवान विष्णु
अंतर्ध्यान हो गए,
और हमारे लिए विचारणीय
प्रश्न छोड़ गए।