Tuesday, May 22, 2007

जब आप ही हमको नहीं समझा पा रहे हैं....

भुलाना लाख चाहे पर नहीं भुल पा रहे हैं ,
बंद आखों के आगे बस तुम्हारे साथ किसी और को पा रहे हैं ,
जल उठता हैं मन मेरा भर जाता हैं आँखों में संमदर,
कैसे संभालु अपने आप को बिखर ने तक टुट जाती हुँ ,
हम लाख चाहे पर प्यार की दिवानगी हद से आगे बढ जाती हैं ,
इसी दिवानगी को आप पागलपन नाम दे रहे हैं ,
तुम्हारे जैसे हर एक को नहीं बता पा रहे हैं ,
उन बेगानों को क्या समझाये जब आप ही हमको नहीं समझा पा रहे हैं....

2 comments:

Unknown said...

pll itna bhi dil se mat likho ki padhenwale ko bhi hila de.. sorry...

Preethisastry said...

Sure Shweta will start writing. Right now I am juggling too many things.