तनहा सफर.....
एक रंगीन शाम उस विशाल समंदर के नाम ,
जहाँ तक पहुँच रही थी सूरज की लाल लाल लालीमा,
उस ठंडी रेत चलना तुमहारे साथ,
पकडे रही मदहोशी में हाथों में हाथ
एक अजीब सी छुअन महसुस होती थी लहरों के आनें पर..
उठ जाती थी दिल मेँ अजीब सी हलचल लहरों के आनें पर..
जी चाहा कस के पकडु हाथ तुमहारा
कि तुम ही बचा लों इन लहरों से दामन हमारा
पर ना जानें कया हुआ हाथों में ना था हाथ तुमहारा
घबराकर पीछे मुड के देखा तो पाया
मीलों तक अकेले ही कटा सफर हमारा................
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