छलावा
रफ्ता-रफ्ता
चला था अकेला
ना थी उम्मीद
ना कोई हमसफर
अपनी मंजिल ढूंढता
अपने जज्बातों के साथ
कुछ ना सूझा चौराहे पे
कि मैं जाऊं किधर
तभी एक परी ने कराया
जीवन का एहसास
कहा, बबुआ मैं हर पल
हूं तुम्हारे साथ
मुझे भी एक मायना मिला
पर उसने भी मुझे छलावा
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जिंदगी
जिंदगी तू कितने रंग
दिखाएगी मुझे
जिंदगी तू कितना
तरसायेगी मुझे
क्यों तुझे है खुद पर
इतना गुमान
जिंदगी तू कितना और
रुलाएगी मुझे।
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